क्या आप जानते हैं इस्लामिक नये साल का मतलब ?

एस एम फ़रीद भारतीय
इस्लामी नया साल यानी हिजरी सन्, हिजरी मतलब जिस दिन अल्लाह के महबूब ने मक्का से मदीने के लिए हिजरत की यानि सफ़र शुरू किया, ये 1439 हिजरी मुबारक है, जैसा लिखा जा चुका है दुनिया के हर मजहब या कौम का अपना-अपना नया साल होता है, नए साल से मुराद (आशय) है पुराने साल का ख़ात्मा (समापन) और नए दिन की नई सुबह के साथ नए वक्त की शुरुआत, नए वक्त की
शुरुआत ही दरअसल नए साल का आगाज (आरंभ) है.
जैसे वर्ष प्रतिपदा अर्थात गुड़ी पड़वा (चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि) से विक्रमी नवसंवत्सर का आरंभ होता है वैसे ही मोहर्रम के महीने की पहली तारीख से इस्लामी नया साल यानी नया हिजरी सन् शुरू होता है.
इस्लामी कैलेंडर में जिलहिज के महीने की आखिरी तारीख को चाँद दिखते ही पुराना साल विदाई के पायदान पर आकर रुखसत हो जाता है और अगले दिन यानी मोहर्रम की पहली तारीख से इस्लामी नया साल शुरू हो जाता है, मोहर्रम के महीने की पहली तारीख से नया हिन्दी सन् यानी नया इस्लामी साल शुरू होता है.
काबिले-गौर (ध्यान देने योग्य) बात यह है कि पहली तारीख यानी यकुम (प्रथम) मोहर्रम से जो इस्लामी नया साल शुरू होता है उसमें मुबारकबाद अर्थात बधाई देने के लिए कभी भी 'मोहर्रम मुबारक' नहीं कहा जाता (क्योंकि मोहर्रम के महीने की दसवीं तारीख, जिसे 'यौमे-आशुरा' कहा जाता है, को ही हजरत इमाम हुसैन की पाकीजा शहादत का वाकेआ पेश आया था) बल्कि कहा जाता है 'नया साल मुबारक!' चूँकि मोहर्रम के महीने में ही (जैसा कि कहा जा चुका है) हजरत मोहम्मद (स.) के नवासे (दौहित्र) हजरत इमाम हुसैन की शहादत का वाकेआ पेश हुआ था, इसलिए शुरुआती तीन दिनों यानी मोहर्रम के महीने की पहली तारीख से तीसरी तारीख तक मुबारकबाद दे देनी चाहिए.
कुछ उलेमा (इस्लामी विद्वान और व्याख्याकार) चौथे मोहर्रम तक भी नए साल की मुबारकबाद देने की बात को तस्लीम (स्वीकार) करते हैं, लेकिन इसमें मतभेद हैं, इसलिए मोहर्रम की तीसरी तारीख तक ही नए साल की मुबारकबाद देना बेहतर है, बाद की तारीखों में इस्लामी नए साल की मुबारकबाद देना मुनासिब नहीं है, सबसे अच्छा तो यही है कि इस्लामी नए साल की मुबारकबाद पहले ही दिन देने की पहल की जाए.
नए साल का मतलब इस्लाम मजहब में बेवजह का धूमधड़ाका करना या फिजूल खर्च करना या नाच-गानों में वक्त बर्बाद करना नहीं है बल्कि अल्लाह (ईश्वर) की नेमत (वरदान) और फजल (कृपा) की खुशियाँ मनाना है.
इस्लामी नए साल को मनाने का तरीका यह है कि बेबसों, बेवाओं (विधवाओं), बेसहारा लोगों की मदद करना, जरूरतमंदों और यतीमों (अनाथ बच्चे-बच्चियों) की दिल से सहायता करना और जुबान से चुप रहना यानी सहायता करके प्रचार के ढोल नहीं पीटना, बीमारों, बूढ़ों और अपंगों-अपाहिजों यानी विकलांगों तथा निःशक्तों की मदद करना, बुजुर्गों का सम्मान करना अपना कर्तव्य (फर्ज) पूरी मुस्तैदी और ईमानदारी से निभाना, इस्लामी नया साल यानी सब रहें खुशहाल.
जो बीत गया सो बीत गया अब नये दिन से नये साल की शुरूआत इंसान ओर जानदारों की दिल से ख़िदमत करने का अहद (वचन) लेकर शुरू करते हैं.
यानि अपनी ज़मीन मैं नये पेड़ लगाकर मौसम को ख़ुशगवार बनाते हैं जिससे इंसान ओर जानवर दोनों ही फ़ायदा हासिल कर सकें ओर खुली हवा मैं ताज़ा सांस लेने के साथ गर्मी मैं साय के नीचे आराम कर सकें हम हो या कोई मुसाफ़िर.
दूसरे पानी के इंतज़ाम करें जिससे इंसान ओर जानवरों को प्यास के वक़्त आसानी से प्यास बुझाने को साफ़ पानी मिल सके.
रास्तों से छोटे बड़े पत्थरों को जो भी दिख जाये हटाते चलें जिससे किसी को ठोकर ना लगे ओर जो भी ऐसी चीज़ दिखाई दे जिससे जानदार को बेवजह नुकसान हो सकता है वो रास्ते से हटा दें कांटा हो कांच हो या कोई ओर नुकसान देने वाली चीज़.
कुल मिलाकर शरियत का ये हुकुम है कि जो भी कुछ आप करें वो दुनियां ओर इंसानियत के साथ जानदारों की भलाई के लिए करें आप उनके रहबर बने मज़ाक से भी दूर रहें उस मज़ाक़ से जिससे किसी को नुकसान हो क्यूंकि इस्लाम मैं किसी को नुकसान पहुंचाकर फ़ायदा उठाना भी जायज़ नहीं है...
अल्लाह हमको समझने ओर समझाने की तौफ़ीक़ दे आमीन !!

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