दोस्तों सैफ़ी नाम का हक़दार कौन, अनजाने में चोरी से रख लिया ये नाम कैसे जानें पूरा सच...?

सबसे पहले मैं आपके सामने अपने सवालों को दोहरा दूँ, फिर बात करेंगे सैफ़ी नाम के सच और इस सैफ़ी क़बीले के असल नाम की, सैफ़ी नाम से पहले इस क़बीले के लोग किस नाम से जाने जाते थे, इतिहास क्या रहा है इस क़बीले का और असल सैफ़ी कौन हैं उनका फ़िरका क्या है...?

सैफ़ी समाज के लोगों से मेरा
सवाल, सैफ़ी कितने प्रकार के होते हैं.

जवाब है दो...!

सवाल पहला सैफ़ी समाज कौनसा है...?

क्या पहले समाज के रहते दूसरा सैफ़ी कहला सकता है...?
 
अपने को सैफ़ी लिखने वाले कौनसे सैफ़ी हैं...?

सैफ़ी का इतिहास क्या है...?

कितना जानते हैं आप आप सैफ़ी के बारे में...?

इस साल मलाल तो सैफ़ी समाज के ठेकेदारों को होगा 6 अप्रैल बिन पगड़ी और ख़िदमत कराये निकल गया, कमीने कोरोना की वजह से...?

नोट- जवाब शालीनता से दें...!
आपका दोस्त/भाई
एस एम फ़रीद भारतीय

ये मेरे वो सवाल थे जिनको मैने अपने क़बीले के लोगों से किया और अनजाने ही बहुत से लोगों को मेरे इन सवालों से तक़वीफ़ हुई कि मैं किस तरहां के सवाल कर रहा हुँ और क्यूं कर रहा हुँ, तब सबसे पहले मैं उन लोगों से मांफ़ी चाहता हुँ अगर आपको ंमेरे सवालों से तक़लीफ़ पहुंची है तो मुझे मांफ़ करें मेरा मक़सद कतई आप लोगों को दुख देना नहीं था बल्कि में कहना चाहता था कि जो नाम हमारे बुज़ुर्गो ने रखा है उनसे अनजाने ही बहुत बड़ी चूक हुई थी.

क्यूंकि शायद उनको नहीं मालूम था कि ये नाम पहले ही किसी बड़े क़बीले का है, या कोई क़बीला वो भी बहुत बड़ा सैफ़ी नाम से देश ही नहीं बल्कि दुनियां के कई मुल्कों में अपन मज़बूत पकड़ रखता है, हम उस क़बीले से अपने को इसलिए नहीं जोड़ सकते कि उसका फ़िरका ही अलग है और वो फ़िरका हमारे फ़िरके की नज़र में या जो बाकी फ़िरके हैं उनकी नज़र में अच्छा माना जाता है, इस ख़ुलासे के बाद जब आपको पूरे सबूतों के साथ समझाया और बताया जा रहा है तब आगे भी आपके ही हाथ में है कि आप इस सैफ़ी नाम के साथ उस फ़िरके का कहलाना पसंद करेंगे या अपने क़बीले के उस सरनेम को अपनायेंगे जो सैंकड़ों सालों से हमारी पहचान रही लेकिन कुछ वक़्त की गुमनामी ने हमको एक नये नाम सैफ़ी का सहारा लेने पर मजबूर कर दिया.

शुरू करते हैं अब सैफ़ी नाम किसका है, कब से वजूद में है और कहां कहां होने के साथ वो क्या हैसियत रखता है...?

तब समझ लें हमारे मुल्क में भी एक क़बीला है जिसको बोहरा कबीले के नाम से जाना जाता है, इस क़बीले के बारे में आप सब बाख़ुबी जानते होंगे ऐसा मुझे यक़ीन है, और यक़ीन भी इसलिए है कि अभी कुछ साल पहले ये फ़िरका आम मुस्लिमों की नज़र में तब आया जब इस क़बीले के ज़िम्मेदारों से मिलने हमारे मुल्क के मौजूदा प्रधानमंत्री जनाब नरेंद्र मोदी साहब मिलने पहुंचे और ये ख़बर एक तरहां से मीडिया की सूर्ख़ियां बन गई, काफ़ी ज़ोर शोर से इसको मीडिया ने दिखाया और सोशल मीडिया पर तो ये बहुत दिनों तक चर्चा का विषय बना रहा.

तब हुआ यूं कि हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी अचानक एक मस्जिद में मुस्लिमों के बीच जा पहुंचे और उन मुस्लिमों ने भी प्रधानमंत्री को बड़ी ही इज़्जत से नवाज़ा 

सैफ़ी समाज भारत का ऐसा समुदाय है जिसके अधिकांश घरों में एक वक्त का खाना ‘कॉमन किचन’ से आता है, ‘कॉमन किचन’ का यह नियम दाऊदी बोहरा के फैज-उल मुवैद-अल-बुरहानिया कार्यक्रम का हिस्सा है, इस समाज की शुरुआत मिस्त्र से हुई थी और 11वीं शताब्दी में भारत आए थे, भारत में सिद्धपुर (गुजरात) में अपना मुख्यालय बनाया था। जानते हैं समाज से जुड़ी अहम बातें...

ऐसे बना समाज
मूलत: मिस्र में उत्पन्न और बाद में अपना धार्मिक केंद्र यमन ले जाने वाले मुस्ताली मत ने 11वीं शताब्दी में धर्म प्रचारकों के माध्यम से भारत में अपनी जगह बनाई। 1539 के बाद जब भारतीय समुदाय बहुत बड़ा हो गया, तब इस मत का मुख्यालय यमन से भारत में सिद्धपुर लाया गया। 1588 में दाऊद बिन कुतब शाह और सुलेमान के अनुयायियों के कारण बोहरा समुदाय में विभाजन हुआ और दोनों ने समुदाय के नेतृत्व का दावा किया। बोहराओं में दाऊद और सुलेमान के अनुयायियों के दो प्रमुख समूह बन गए, जिनके धार्मिक सिद्धांतों में कोई खास सैद्धांतिक अंतर नहीं है। दाऊदियों के प्रमुख मुम्बई में तथा सुलेमानियों के प्रमुख यमन में रहते हैं।

दाऊदी बोहरा मुसलमानों की विरासत फातिमी इमामों से जुड़े हैं जो पैगंबर मोहम्मद के प्रत्यक्ष वंशज हैं। 10वीं से 12वीं सदी के दौरान इस्लामी दुनिया के अधिकतर हिस्सों पर राज के दौरान ज्ञान, विज्ञान, कला, साहित्य और वास्तु में उन्होंने जो उपलब्धियां हासिल कीं आज मानव सभ्यता की पूंजी हैं। इनमें एक है काहिरा में विश्व के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक ‘अल-अजहर’। भारत में उनका सबसे बड़ा शाहकार है भेंडी बाजार स्थित रूदाते ताहेरा जो 51वें दाई अल-मुतलक सैयदना डॉ. ताहिर सैफुद्दीन और उनके पुत्र 52वें दाई अल-मुतलक सैयदना डॉ. मोहम्मद बुरहानु्द्दीन का मकबरा है। संगमरमर का बना यह मकबरा 10 से 12वीं सदी के दौरान मिस्र में प्रचलित फातिमीदी वास्तु और भारतीय कला का अद्भुत मिश्रण है। रूदाते ताहेरा की शान बढ़ाती है बेशकीमती जवाहरातों से जड़ी सुनहरे हर्फों वाली अल-कुरान। मुंबई की 20 से ज्यादा बोहरा मस्जिदों में कई शानदार हैं जिनमें सबसे बड़ी है 100 वर्ष से भी ज्यादा पुरानी सैफी मस्जिद।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इंदौर में बोहरा समाज की वाज़ (प्रवचन) में शिरकत करने के लिए पहुंचे थे, उन्होंने यहां माणिकबाग स्थित सैफी मस्जिद में कहा बोहरा समाज से उनका गहरा रिश्ता रहा है, सैयदना साहब ने समाज के लिए जीने की सीख दी, बोहरा समाज दुनिया को भारत की इस ताकत से परिचित करा रहा है, शांति-सद्भाव, सत्याग्रह और राष्ट्रभक्ति के प्रति बोहरा समाज की भूमिका महत्वपूर्ण रही है, दाऊदी बोहरा समुदाय काफी समृद्ध, संभ्रांत और पढ़ा-लिखा समुदाय है.

यहां अधिक रहते हैं इस बोहरा समुदाय के लोग...?

दाऊदी बोहरा मुख्यरूप से गुजरात के सूरत, अहमदाबाद, जामनगर, राजकोट, दाहोद, और महाराष्ट्र के मुंबई, पुणे व नागपुर, राजस्थान के उदयपुर व भीलवाड़ा और मध्य प्रदेश के उज्जैन, इन्दौर, शाजापुर, जैसे शहरों और कोलकाता व चेन्नई में बसते हैं। पाकिस्तान के सिंध प्रांत के अलावा ब्रिटेन, अमेरिका, दुबई, ईराक, यमन व सऊदी अरब में भी उनकी अच्छी तादाद है, मुंबई में इनका पहला आगमन करीब ढाई सौ वर्ष पहले हुआ, यहां दाऊदी बोहरों की बड़ी रिहाईश भेंडी बाजार, मझगांव, क्राफर्ड मार्केट, भायखला, बांद्रा, सांताक्रुज और मरोल में है, यहां तक कि भेंडी बाजार, जहां बोहरों का बोलबाला है- बोहरी मोहल्ला ही कहलाने लगा है, फोर्ट की एक सड़क भी बोहरा बाजार के नाम से मशहूर है.

दाई-अल-मुतलक दाऊदी सबसे बड़े गुरु
दाई-अल-मुतलक दाऊदी बोहरों का सर्वोच्च आध्यात्मिक गुरु पद होता है, समाज के तमाम ट्रस्टों का सोल ट्रस्टी होने नाते उनका कारोबार व अन्य संपत्ति पर नियंत्रण होता हैं, इस समाज में मस्जिद, मुसाफिरखाने, दरगाह और कब्रिस्तान का नियंत्रण करने वाले सैफी फाउंडेशन, गंजे शहीदा ट्रस्ट, अंजुमन बुरहानी ट्रस्ट जैसे दर्जनों ट्रस्ट हैं, 150 छोटे ट्रस्टों को मिलाकर बनाया गया अकेला दावते हादिया प्रॉपर्टी ट्रस्ट ही 10 हज़ार करोड़ से ऊपर का बताया जाता है जो जमात के प्रशासन के लिए जिम्मेदार है.

एस एम फ़रीद भारतीय
लेखक, सम्पादक व मानवाधिकार सलाहकार

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