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आज फिर गांधीजी ओर अब्बास तैयबजी बनना होगा, अंग्रेजों के दलालों के लिए...?

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"एस एम फ़रीद भारतीय" कोई लाठी मारे तो तीन ही प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं? झुकना, हाथ उठाकर रोकना, और पलटकर वार करना, मगर महात्मा गांधी ने इस समाज को एक और प्रतिक्रिया सिखाई, वो थी वार को सहना, गांधी के अनुयाई अब्बास तैयबजी से 76 साल की उम्र में इसकी उम्मीद तो क्या, इसके बारे में सोचना भी मुश्किल होता, आज फिर वक़्त है गांधी ओर अब्बास तैय्यबजी बनने का जिसपर देश चल पड़ा है, दो लोगों ने अंग्रेज़ों का जीना मुहाल कर दिया था आज तो करोड़ों तैयार हैं...! अब जानते हैं इतिहास गांधी ओर तैय्यबजी का दांडी यात्रा से कोई एक या दो रोज़ पहले अपनी बेटी को लेकर तैयबजी बापू से मिलने गए थे, यह किस्सा बाद में, पहले बोहरा समाज और उससे ताल्लुक रखने वाले अब्बास तैयबजी की ज़िंदगी के कुछ पहलू जान लेते हैं. अब्बास तैयबजी एक बोहरा मुस्लिम परिवार से थे, इस समुदाय की धमक आप सिर्फ़ गुजरात, राजस्थान के उदयपुर या महाराष्ट्र ज़िले में सुन सकते हैं, यह व्यापारिक समुदाय है और उपेक्षाकृत शांत, महिलाएं रंग-बिरंगे बुर्के पहनती हैं और पुरुषों की टोपी सुन्नी या शिया मुसलमानों से अलग होती है, इनकी तुल