सैफ़ी नाम ही नहीं है, दुनियां समाई है इसमें?

सैफ़ी नाम कैसे मिला, सैफ़ी नाम छोटा है लेकिन दुनियां पूरी दुनियां समाई है इस नाम मैं जानते रहेंगे, जब तक पढ़ते रहेंगे सैफ़ी न्यूज़.

भारत में मुस्लिम लोहार-बढ़ई का पुश्तैनी काम करने वालों को सैफ़ी कहा जाता है.
गांवों में अन्य लोग मिस्त्री या मियांजी या फिर खान साहब कहकर पुकारते थे.
तो कुछ लोग असभ्य भाषा में
ओ लुहार के,ओ बढ़ई के, कहकर भी पुकारते थे, कुछ लोग लुहट्टे-बढ़ट्टे भी कहते थे.
कुछ ऐसे आपत्तिजनक शब्द सीधे दिल पर चोट मारते थे, लेकिन आख़िर करें तो क्या करें, जाएं तो कहां जाएं, पूरे साल जीतोड़ मेहनत करके किसानो के खेतों के लिए नये नये औज़ार बनाते कृषि यंत्रों की मरम्मत करते, इतना सबकुछ करने के बावजूद सामाजिक और आर्थिक रूप से निरंतर शोषण ही होता रहा.
इस बीच देश की अन्य बिरादरियों ने अपनी बिरादर का कुछ न कुछ नाम चुन लिया था ,
जैस -अंसारी, कुरैशी, अब्बासी, इदरीसी, सिद्दिकी, मंसूरी, मलिक, सलमानी अलवी,वग़ैरह वग़ैरह.

लिहाज़ा हमारी बिरादरी के कुछ लोगों ने विचार विमर्श किया कि क्यों न हम लोहार-बढ़ई मिलकर एक अच्छा सा नाम रख लें.
जब हम ख़ुद से ख़फ़ा थे "फ़रीद"दुनियां ये दूर थे, 
अब ख़ुद को जान गये हैं दुनियां को भी बता देंगे.

ताकि मुल्क में हमें भी एक अच्छे से नाम से पुकारा जाए, और हम भी अपने बच्चों को अच्छी तालीम दें, हम भी दूसरी क़बीलों की तरह तरक्की करें.
इसी मकसद को लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर मीटिंग /बैठकों का आयोजन किया जाने लगा.

सैफ़ी बिरादरी को लोगो ने अपने अपने विचारों के माध्यम से पेश किया.
कुछ ने अल्लाह के नबी नूह अलैहिस्सलाम से शुरूआत की क्योंकि हज़रत नूह अलैहि ने लकड़ी की नाव तैयार की थी.

कुछ ने अल्लाह के रसूल हज़रत दाऊद अलैहिस्सलाम से जोड़ा क्योंकि हज़रत दाऊद अलैहि° लोहे का काम करते थे, लोहे को पानी बनाने का सिफ़्त (हुनर ) उनको अल्लाह ने उनको अता फ़रमाई थी.
लिहाज़ा, बढ़ईयों ने ‘नूही’ नाम तज़वीज़ किया और लुहारों ने “दाऊदी” पर ज़ोर दिया.
चूंकि एक औज़ार या हथौड़े या तलवार में लोहे और लकड़ी दोनों की बराबर की भागीदारी है, इसलिए किसी एक को चुनने मे दुशवारियां थीं, अब क्या नाम रखा जाए ?
इसके लिए अमरोहा में एक महासम्मेलन हुआ, कड़ी मेहनत व लाख कोशिशें करने के बाद हज़ारो बिरादर के लोगों के बीच.
तब 6 अप्रैल 1975 को स्वतंत्रता सेनानी और अल-जमियत (उर्दू समाचारपत्र )के संपादक हज़रत मौलाना उस्मान फ़ार्क़लीत साहब ने एक नाम तय किया.
दोस्तो मैं उन सैंकडो सैफ़ी सरनेम के संस्थापकों के नाम व गांव, कस्बे, शहर व सूबों के नाम अपने इस लेख में लिख सकता था.
लेकिन जगह व वक्त की क़िल्लत है, मैं इसका क्रेडिट उन लोगो के साथ साथ जो उस सैफ़ी सरनेम के अभियान में पेश -पेश रहे थे, अपनी बिरादरी के उन सभी छोटे -बड़े, बुजुर्गों-जवानों ,बच्चों और औरतों को भी देना चाहता हूँ जिन्होंने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
सैफ़ की जमा है सैफ़ी यानि
सैफ़ी =तलवार बनाने वाले,
ओर चलाने वाले के होते है.
सैफ़ुल्लाह मतलब अल्लाह की तलवार, 
लिहाज़ा सैफ़ी नाम से (लुहार-बढ़ई) सभी खुश थे.
क्योंकि तलवार में लोहा भी होता है और लकड़ी का हत्था होता है.

इस नाम को सभी ने सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया, 6 अप्रैल को इसका स्वाधीनता दिवस /स्थापना दिवस मनाया जाता है.
फिर धीरे धीरे बिरादरी के लोगों ने गांव को अलविदा कह कर शहरों का रूख़ किया.
“हमको ना रोको हम हिजरती हैं बन चुके हैं, 
गांवों मैं रहकर अब तक मिला ही क्या है"

उल्लेखनीय है कि आज से तीस चालीस साल पहले सैफ़ी समाज की सामाजिक, आर्थिक , शैक्षिक, स्थिती बहुत ही दयनीय होती थी.
लेकिन जैसे जैसे बिरादर के लोगों ने रोजगार की तलाश में दिल्ली का और अन्य शहरों की ओर पलायन किया और मेहनत मजदूरी करके अपने बच्चों को स्कूल भेजा तो शिक्षा के साथ साथ रोजगार के अवसर भी मयस्सर होते गये.
कृषि यंत्रों को बनाने के साथ साथ एक सुंई से लेकर हवाई जहाज तक को बनाने में सैफ़ी बिरादरी को महारत हासिल है.
पैदाईशी इन्जीनियर यह बिरादरी हमेशा मेहनतकश रही, मुल्क की सरकार अगर हमको मौक़ा दे ओर हमारे हुनर को तस्लीम करे तो मैं आज बड़े ही यक़ीन से कह सकता हुँ कि इंशाअल्लाह हिन्दोस्तान का नाम दुनियां के अज़ीम मुल्कों मैं शुमार होगा.
आज जो हमारी सरकार सरहद की हिफ़ाज़त के लिए हीरे मोती के भाव हथियार ख़रीदती है हम उसको ओर उससे बेहतर मुल्क मैं कोड़ियों के भाव पैदा करने के साथ मुल्क से बाहर अपने हथियारों को ओरों की तरहां भेजकर मुल्क को माला माल करा सकते हैं, हम भी दुनियां के नम्बर एक हथियार निर्माता मुल्क मैं अपने मुल्क का नाम शुमार करा सकते हैं.
मगर अफ़सोस हमारे पास अपने हुनर को दिखाने या अपनी बात को सरकार तक पहुंचानें का कोई बड़ा ज़रिया प्लेटफार्म नहीं था, यही वजह है कि हम आजतक अपना लीडर नहीं चुन पाये, लेकिन आज सैफ़ी न्यूज़ की शुरूआत हो चुकी है ओर उम्मीद है अब हम कुछ कामयाब हो सकें.
मेरा एक शेर है,
“हर मुल्क की ख़ुशहाली मैं "सैफ़ी" तेरा है ज़रूर हाथ, 
सैफ़ी समाज ज़िन्दाबाद, सैफ़ी क़बीला ज़िन्दाबाद..

आज सैफ़ी अल्लाह की मदद ओर अपने दम पर दुनिया के साथ क़दम से क़दम मिलाकर चल रहे हैं, मुल्क की सरकार, हुकुमरानों या राज्यों की सरकारों ने इस क़बीले को कभी किसी तरहां की मद नहीं दी ओर ना ही कोई ध्यान इस क़बीले पर दिया है....
अगले अंक मैं जानेंगे कि ये छोटा सा नाम "सैफ़ी"  गुमराही मैं क्यूं है? 
एस एम फ़रीद भारतीय
मानवाधिकार कार्यकर्ता
09808123436

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