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दोस्तों सैफ़ी नाम का हक़दार कौन, अनजाने में चोरी से रख लिया ये नाम कैसे जानें पूरा सच...?

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सबसे पहले मैं आपके सामने अपने सवालों को दोहरा दूँ, फिर बात करेंगे सैफ़ी नाम के सच और इस सैफ़ी क़बीले के असल नाम की, सैफ़ी नाम से पहले इस क़बीले के लोग किस नाम से जाने जाते थे, इतिहास क्या रहा है इस क़बीले का और असल सैफ़ी कौन हैं उनका फ़िरका क्या है...? सैफ़ी समाज के लोगों से मेरा

सैफ़ी संगठन पर सवाल

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तब मैने उससे पूंछा कि आप किस बिरादरी से ताल्लुक रखते हो, हल्का सा जवाब मिला बढ़ई यानि आप अपनी बिरादरी "सैफ़ी समाज" कह लें. सवाल- सैफ़ी समाज मैं बिगाड़ पैदा करने वाले कौन...? जवाब- नये बन रहे संगठन और उससे जुड़े लोग...! तब मैने कहा कि आप देश के कानून का सहारा पहले लें और साथ ही अपने समाज के ठेकेदार बनने वाले श्ख़्स का नाम भी लिखाई जाने वाली रिपोर्ट मैं प्लानर के तौर पर यानि 120 बी के तहत ज़रूर लिखें, क्यूंकि नये संगठन बनाकर अपना झंडा ऊंचा करने वाले ही इस क़ौम को गुमराही और गिरोह मैं बांट रहे हैं , सैंकड़ों संगठन एक ही समाज के बन चुके हैं, मगर कहीं किसी की मदद करता या समाज मैं हो रहे बिगाड़ को रोकने की कोशिश कोई नहीं करता, बल्कि ये संगठन एक मिसाल बन गये हैं बिगाड़ पैदा करने के लिए, जब इन्होंने टूट की तभी नये संगठन की बुनियाद पड़ी, अगर सेवा यानि ख़िदमत इनका मक़सद होता तब एक संगठन मैं रहकर काम करते, अपने समाज के लोगों के दुख दर्द को समझते, मगर इन लोगों को अपना नाम ऊंचा चाहिए था, लिहाज़ा घर के दरवाज़े पर नाम के साथ पद की तख़्ती लगाने के लिए एक नया बिगाड़ पैदा कर अप

आज फिर गांधीजी ओर अब्बास तैयबजी बनना होगा, अंग्रेजों के दलालों के लिए...?

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"एस एम फ़रीद भारतीय" कोई लाठी मारे तो तीन ही प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं? झुकना, हाथ उठाकर रोकना, और पलटकर वार करना, मगर महात्मा गांधी ने इस समाज को एक और प्रतिक्रिया सिखाई, वो थी वार को सहना, गांधी के अनुयाई अब्बास तैयबजी से 76 साल की उम्र में इसकी उम्मीद तो क्या, इसके बारे में सोचना भी मुश्किल होता, आज फिर वक़्त है गांधी ओर अब्बास तैय्यबजी बनने का जिसपर देश चल पड़ा है, दो लोगों ने अंग्रेज़ों का जीना मुहाल कर दिया था आज तो करोड़ों तैयार हैं...! अब जानते हैं इतिहास गांधी ओर तैय्यबजी का दांडी यात्रा से कोई एक या दो रोज़ पहले अपनी बेटी को लेकर तैयबजी बापू से मिलने गए थे, यह किस्सा बाद में, पहले बोहरा समाज और उससे ताल्लुक रखने वाले अब्बास तैयबजी की ज़िंदगी के कुछ पहलू जान लेते हैं. अब्बास तैयबजी एक बोहरा मुस्लिम परिवार से थे, इस समुदाय की धमक आप सिर्फ़ गुजरात, राजस्थान के उदयपुर या महाराष्ट्र ज़िले में सुन सकते हैं, यह व्यापारिक समुदाय है और उपेक्षाकृत शांत, महिलाएं रंग-बिरंगे बुर्के पहनती हैं और पुरुषों की टोपी सुन्नी या शिया मुसलमानों से अलग होती है, इनकी तुल

कैमरे के अविष्कारक कौन थे ?

एस एम फ़रीद भारतीय यह बात बहुत ही कम लोगों को मालूम होगी कि प्रतिदिन करोड़ों लोगों की ज़बान पर आने वाला कैमरा शब्द अरबी के अल-क़ुमरा (छोटी अंधेरी कोठरी) से बना है. दस शताब्दियों पहले जन्म लेने वाले एक मुसलमान विद्वान ने इसका अविष्कार किया था! उन्ही की खोज के आधार पर बाद में वर्तमान रूप में कैमरा बना, उन्होंने एक अंधेरे कमरे में एक छेद किया हुआ था ताकि उससे प्रकाश अंदर आए और वह प्रकाश एवं आँख के बारे में शोध कर सकें. संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन यूनेस्को ने पेरिस में 19 जनवरी से शुरू हुए प्रकाश एवं दृश्य तकनीक के वर्ष के उद्घाटन समारोह में इस मुस्लिम विद्धवान को याद किया और उनके शोध कार्यों की सराहना की. इस महान विद्वान एवं वैज्ञानिक का नाम. “इब्ने हैसम” है कि जिनका चित्र इराक़ के केन्द्रीय बैंक ने नोट पर छपवाया है! और उनका नाम एक छोटे उपग्रह पर अंकित किया गया है! जिसकी खोज स्वीज़रलैंड के खगोलशास्त्री स्टीफ़ानो स्पोज़ेटी ने 16 वर्ष पूर्व की थी. वैज्ञानिकों ने इब्ने हैसम की सराहना के उद्देश्य से इस उपग्रह का नाम अलहाज़ेन रखा है. अबू अली इब्ने हैसम का ज

सैफ़ी बिरादरी का नाम सैफ़ी कैसे पड़ा

(दोस्तों, वैसे तो मैं किसी भी एक धर्म, जाति, या बिरादरी, का पक्षधर नहीं हूँ, मैं हमेशा सिर्फ़ "इन्सानियत" के धर्म की ही बात करता हूँ, और उसी के ऊपर लिखता हूँ, और उसी पर आधारित छोटे-मोटे "समाजसेवा" के काम भी करने की "कोशिश" करता हूँ, लेकिन मेरा मानना है कि अगर हम किसी भी "क़बीले", किसी भी "बिरादरी" से ताल्लुक़ रखते हैं तो हमें उसका "इतिहास" जानना भी बेहद ज़रूरी होता है, कि हम क्या थे ? क्या हैं ? और हमें क्या होना है ? तो इसी कड़ी में आज मैं "सैफ़ी" बिरादरी के इतिहास के बारे में अपनी थोड़ी सी जानकारी लोगों तक पहुंचाना चाहता हूँ, कि सैफ़ी बिरादरी का नाम सैफ़ी कैसे पड़ा ??) ~~~~~~~~~~~~~~~ "दोस्तों, भारत में मुस्लिम समाज के "लोहार-बढ़ई" का "पुश्तैनी" काम करने वालों को "सैफ़ी" कहा जाता है। अब से करीब 50 साल पहले गांवों में अन्य बिरादरी के लोग "मिस्त्री" या "मियांजी" या फिर "खान साहब" कहकर पुकारते थे। उस ज़माने में बढ़ई बिरादरी के लोग पूरे साल जी तोड़ मेहनत करके कि

तारीखों में गुजरे नौ साल बटला हाउस के बाद आजमगढ़ ?

रिहाई मंच, आजमगढ़ की ओर से जारी इंसाफ के पैमाने अलग-अलग क्यूं ? यह सूची लंबी है कि देश में आतंकवाद के विभिन्न मामलों में आरोपियों ने लंबा समय जेलों में गुजारा। आखिरकार अदालत ने उन्हें बेकसूर माना और रिहा किया। मानवाधिकार और नागरिक अधिकारों के दायरे में यह चर्चा का विषय रहा है कि क्या अपनी जवानी के दस-बीस साल सलाखों के पीछे गुज़ार देने के बाद ‘बाइज्जत’ बरी कर दिए जाने भर से न्याय के तकाज़े पूरे

क्या हम राजनीति नहीं सीख सकते ?

*सैफ़ी पोस्ट साप्ताहिक* "हक़ की बुलंद आवाज़" मौलाना जुम्मन :- साथियो सपा को वोट दो ! मौलाना शकूर :- भाईयों कांग्रेस में वोट दो ! मौलाना गफ़ूर :- अमां यार BSP को वोट दो ! बड़े मौलाना :- क्या है ये सब